निजी कंपनियों को वर्ष 1995 में भारत में मोबाइल सेवा शुरू करने की अनुमति दी गई थी। उस समय दूरसंचार विभाग सरकारी सेवा प्रदाता था। लेकिन दूरसंचार विभाग को मोबाइल सेवा शुरू करने की अनुमति नहीं थी। बीएसएनएल वर्ष 2002 में ही अपनी मोबाइल सेवा शुरू कर सका था। इस प्रकार सरकारी सेवा प्रदाता निजी ऑपरेटरों के प्रवेश के बाद सात साल बाद ही मोबाइल सेगमेंट में प्रवेश करने में सक्षम था। यह सरकार द्वारा बीएसएनएल के साथ एक सुनियोजित भेदभाव है।
2006 से 2012 तक BSNL को मोबाइल उपकरण खरीदने की अनुमति नहीं थी। एक के बाद एक बीएसएनएल द्वारा उपकरणों की खरीद के लिए जारी निविदाओं को सरकार द्वारा किसी न किसी बहाने रद्द कर दिया गया था। इस अवधि के दौरान भारत में मोबाइल कनेक्शन तेजी से बढ़े। और इसका लाभ निजी ऑपरेटरों द्वारा उठाया गया था। और इस अवधि के दौरान बीएसएनएल घाटे में चला गया था। बीएसएनएल आज भी घाटे से बाहर नहीं निकल पा रहा है।
वर्ष 2010 में 3G स्पेक्ट्रम की नीलामी की गई थी। लेकिन, बीएसएनएल को नीलामी में भाग लेने की अनुमति नहीं दी गई थी। बाद में बीएसएनएल को निजी ऑपरेटर द्वारा भुगतान की गई कीमत पर 3G स्पैक्ट्रम खरीदने के लिए बाध्य होना पड़ा। एक बार फिर BSNL निजी ऑपरेटरों के बाद ही अपनी 3G सेवा शुरू कर पाया।
निजी ऑपरेटरों द्वारा 2015 में 4G सेवा शुरू की गई थी। लेकिन बीएसएनएल को 4G शुरू करने की अनुमति नहीं दी गई थी। यूनियनों और संघों द्वारा किए गए लंबे और निरंतर संघर्षों के बाद ही सरकार ने 2019 में घोषणा की थी कि बीएसएनएल को 4G स्पेक्ट्रम दिया जाएगा। लेकिन इसके बाद भी, सरकार ने बीएसएनएल को नोकिया, एरिक्सन आदि जैसे वैश्विक विक्रेताओं से उपकरण खरीदने की अनुमति नहीं दी। सभी निजी ऑपरेटर बिना किसी प्रतिबंध के वैश्विक विक्रेताओं से उपकरण खरीद रहे हैं। सरकार ने जानबूझकर बीएसएनएल के 4G लॉन्चिंग में बाधाएँ खड़ी की। यह एक त्रासदी है कि आज भी बीएसएनएल अपनी 4G सेवा शुरू नहीं कर पाया है।
अब सरकार ने केवल निजी ऑपरेटरों को 5G सेवा शुरू करने की अनुमति देने का फैसला किया है। फिर से बीएसएनएल के साथ भेदभाव किया गया है और उसे दरकिनार कर दिया जाता है। सरकार कब तक बीएसएनएल के साथ भेदभाव करती रहेगी?
-पी अभिमन्यु, महासचिव